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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2639
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य

प्रश्न- घनानन्द के वियोग वर्णन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

अथवा
'घनानन्द के विरह वर्णन में मौन पुकार की बहुलता है", इस कथन की सोदाहरण समीक्षा कीजिए।
अथवा
"विरह दशा की जैसी गूढ़ अभिव्यंजना घनानन्द ने की है वैसी रीतिकाल का कोई अन्य कवि नहीं कर सकता। इस कथन की सार्थकता पर प्रकाश डालिए।

उत्तर -

प्रेम की पीर का यह गायक वस्तुत विप्रलम्भ का कवि है। प्रेम का गौरव भी विरह में ही प्रस्फुटित होता है प्रेम की भावना वियोग की अग्नि में तपकर स्वर्ण के समान उज्जवल और खरी हो जाती है। वियोग वर्णन में शारीरिक स्वार्थ की अपेक्षा अनुभूति की गहराई अपेक्षित है इसलिए वियोग वर्णन में कवि की सहृदया और भावुकता का सही पता लग जाता है। घनानन्द स्वयं प्रेम बाण से घायल हो चुके थे। अतः वे प्रेम वेदना के स्वरूप को भली-भांति जानते थे। प्रो. दीपचन्द जैन का कथन है कि उनकी व्यथा वास्तविक हृदय व्यथा थी, उसमें मीरा के प्रेम वियोग की कसक और वियोगिनी गोपिकाओं की अर्द्रता थी, उनके प्रेम संदेशों में मेघदूत के प्रेम संदेश की वेदना का जल और प्रेमोपलंभों में भ्रमरगीत की गोपियों का आत्मनिवेदन था। विरह की हृदयगत अनुभूतियों में घनानन्द का काव्य की उत्कृष्ट अभिलाषा स्वाभाविक है किन्तु निराशा की चरम सीमा में इस अभिलाषा में जिस व्याकुलता, अधीरता, छटपटाहट, असमर्थता, उन्माद और प्रलाप का मिलन हो जाता है, उसके एक से एक बढ़कर भावपूर्ण संश्लिष्ट चित्र घनानन्द ने अंकित किए हैं। वास्तव में विरह प्रेम प्रगाढ़ता की कसौटी है, प्रेम की एकनिष्ठता की परीक्षण अवधि है। वियोग की अग्नि प्रेम प्रगाढता की मांसल मलिनता को जला देती है। विरह काव्य इसीलिए हृदय द्रावक मर्मस्पर्शी चित्ताकर्षक और संवेदनशील होता है। घनानन्द का विरह वर्णन आत्मानुभूति प्रधान होता हुआ भी शास्त्रीयता की कसौटी पर खरा उतरता है। उसमें अनेकरूपता, वैविध्य, प्रभावशीलता, मर्मस्पर्शिता और स्वाभाविकता है। उनका विरह वर्णन मर्यादित आत्मनिवेदन है। विरह चित्रण की अनेक स्थितियों का विवरण निम्नानुसार किया जा सकता है।

आत्मदशा निवेदन - मीन से भी अधिक गहरा और पतंगे से भी अधिक महत्वपूर्ण प्रेम घनानन्द का है क्योंकि मछली और पतंगा तो प्रेम में प्राण त्याग कर कष्टों से बच जाते हैं किन्तु घनानन्द तो प्रिय के सौन्दर्य की लपटों में तिल-तिल जलकर दर्शन की लालसा लिए जीवित रहतें हैं। अपने पौरुष का परिचय देते हैं-

हीन भए जल मीन अंधीन कहा कछु मौ अकुलानि समानै।
नीरसनेही को लाय कलंक निरास है कायर त्यागत प्रानै ॥
प्रीति की रीति सु क्यों समुझे जड़ मीत के पानि परे को प्रमानै।
या मन की जु दशा घनआनन्द जीव की जीवनि जान ही जानै।।

घनानन्द ने आत्म-पीड़ा की अभिव्यक्ति के लिए विरोधात्मक उक्तियों का आश्रय लिया है अतः गहनता, तीव्रता और अभिव्यक्ति का आकर्षण देखते ही बनता है। उद्वेग की विषम अग्नि उठती है जलाने के लिए किन्तु मृत्यु भी दया करके छोड़ देती है। लेकिन प्रेमी को मरने से भी बढ़कर कष्ट होता है। मौत दया कर देती है पर निष्ठुर प्रिय नहीं करता। सुजान के सौन्दर्य में बुद्धि स्मृति सो जाती है, उन्माद में कवि कभी रोता है कभी हँसता है शायद उसे प्रेत लग गये हैं-

खोय दई सुधि सोय गई सुधि, रोय हँसे उन्माद जग्यौ है।
मौन गहे व्यक्ति चाकि रहै, चलि बात रहे तै तन दान दगयौ है।

कवि का प्रेमी हृदय मेघ से आत्म पीड़ा का सानुरोध निवेदन करता है। कभी बादल से सुजान के आँगन में आँसुओं को ले जाकर बरसाने का आग्रह करता है और कभी पवन से पैरों की धूलि लाने का।

प्रेम की विषमता - प्रेम की पराकाष्ठा की अभित्यक्ति के लिए घनानन्द ने प्रेम की विषमता के उदगार सुनाये हैं। यह सूफी कवियों का प्रभाव है। फारसी साहित्य में प्रेम का वैषम्य स्वीकृत है और उर्दू में उस परम्परा का निर्वाह आज तक हो रहा है। वास्तविक प्रेम जिसके प्रति हो जाएगा उसके अनुकूल या प्रतिकूल होने पर भी वह बना रहेगा। प्रेम सह ही रहे या विषम हो जाए प्रेमी की ओर से उसमें कमी नहीं होती प्रेमी प्रिय के निर्दय हो जाने पर भी जिस कष्ट को भोगता है वह वास्तव में बड़ा मार्मिक होता है। स्वयं हँसकर प्रेम बढ़ाया और अब दर्शन भी नहीं देते -

आपुहि ते मन हेरि हंसे,
तिरछे करि नैननि नेह के चाव में।

रूपाशक्ति - अनन्य सुन्दरी सुजान के रूप में आसक्त घनानन्द रात-दिन व्याकुलता, बेचैनी और विवशता का शिकार बना रहता है। उसके विरह में आंखों की दयनीय दशा है, पुतलियाँ, कसकती, खटकती रहती है, खुली मुँदी दोनों स्थितियों में बेचैन रहती है मन व्यग्र हो जाता है कि कहीं इन नेत्रों को कोई व्याधि तो नहीं हो गई -

घन आनन्द जान सजीवन कौ, सपने बिन पाइए खोवति हैं।
न खुली मुंदी जानि परै, दुख ये, दुखहाई जगे पर सोवति हैं।

मन भी कम पीड़ित नहीं है, मन भी रात-दिन तड़पता है। दारुण दुख भोगता है। प्रिय ने कटाक्ष किया था नेत्रों से किन्तु ये बाण जाकर कलेजे में कसकते रहते हैं -

नैनन में लागे जाय जागै स करैजी बीच,
या बस है जीव घारहोत लोट पोट है।

बाबरी रीझ के हाथों बिक गया है कवि नेत्रों को मन को सुजान बिना कहीं चैन नहीं। सुजान का नित नूतन सौन्दर्य उसे खाए डाल रहा है।

स्मृतिजन्य वेदना - प्रिय को एक बार देख लेने पर व्याकुलता का वर्णन कई जगह पर हुआ है। वे प्रिय की अनुपस्थिति अपनी दीनता और कष्ट सहिष्णुता की स्थिति का चित्रण प्रस्तुत करते हैं। प्रिय के दर्शनों के पश्चात् आकर्षण, किन्तु मिलन न होने से उत्पन्न खीझ और व्यथा का भी उन्होंने अनुभूतिपूर्ण वर्णन किया है। प्रिय की निरन्तर स्मृति एक राज दिन का मानसिक व्यापान बन जाता है। स्वप्न हो चाहे जागरण दोनों अवस्थाओं में उसका राज्य होता है, स्मृति ही वियोग की जननी है अत हर छन्द में वह चिपटी हुई है। अतीत की सुखमय स्मृतियाँ दुखमय वर्तमान में राहत देती हैं। एक समय था जब दोनों में निकटता और घनिष्टता थी किन्तु अब दर्शन भी नहीं।

प्राकृतिक उपादानों से उद्दीपन - ऋतु और प्राकृतिक उपादानों के कारण उत्पन्न विरह भी कई स्थानों पर अभिव्यक्ति पा गया संयोग में जो चाँदनी सुख देती है। वियोग में जलाती है यह मनोवैज्ञानिक - सत्य है। तीव्र से तीव्रतर हमारा दुख हो जाता है। प्रकृति का वरदान मानों अभिशाप बन जाता है। भावावेग में प्रेमी कवि की दृष्टि पावस, बसन्त फाल्गुन फाग दीवाली, चाँदनी, मेघ, कोयल, चातक पर पड़ी है अत विरह वृद्धि का विशद वर्णन स्वत उमड़ आया है। पावस में लहकती पुरवैया दहकाती है, बादल व्याकुल करते हैं और बिजली जलाती है। कामदेव देख देता है जीना दुर्लभ है -

लहकि लहिक आवै ज्यों-ज्यों पुरवाई पौन,
दहकि वहकि त्यों-त्यों तन तांवरे तपै,

एक ध्येयता - प्रेमी और प्रिय की विषमता के बावजूद भी घनानन्द का मन कहीं ओर नहीं डोला क्योंकि यह प्रीति तो रोम-रोम में बसी है। एक ही टेक है, प्रेम की निष्ठता और अगाध आस्था उसमें है। यह प्रगाढ़ता हमें विचित्र कर देती है। कभी कविप्रिया के अनुचित आचरण की आलोचना करके उपालम्भ देता है, 'कभी उसकी निष्ठुरता पर खीझता है, कभी प्रार्थना, आग्रह और फटकार करता है पर प्रेम से विमुख नहीं होता। अनंग दाह से व्याकुल होकर भी सब सहन करता है और प्रेम की दृढ़ता का निरन्तर निर्वाह करता है -

एक ही टेक न दूसरी जानति, जीवन प्रान सुजान लिखे रुख।
ऐसी सुहाय तौ मेरौ कहा बस, देखि हौ पीठि दुराय हौ जो सुख ॥

मौन पुकार - "विरही विचार उन की मौन में पुकार है" मौन ही भावना की भाषा कहीं गई है हमारी दारुण दशा मौन द्वारा ही व्यक्त होती है। दर्द की चरम सीमा में हम बोल नहीं पाते। आचार्य शुक्ल ने लिखा है "घनानन्द न तो बिहारी की तरह विरह ताप को बाहरी मन से मापा है, न बाहरी उछल-कूद दिखाई है, जो कुछ हलचल है वह भीतर की है बाहर से वह वियोग प्रशांत और गम्भीर है न उसमें करवटें बदलता है, न सेज की आग की तरह तपना है, उछल-कूद कर भागना है। उनकी मौन पुकार है। "प्रेमी कवि सुजान की निष्ठुरता का स्मरण करता है, सुध-बुध खो बैठता है उसे अपर्नी कूक भरी मूकता पर पूरा विश्वास है -

सुधि करें भूल की सूरति अब आय जाय,
तब सब सुधि भूलि कूकौ गहि मौन को।

उपालम्भ -  वियोग विह्वल कवि घनानन्द ने तीखे और सशक्त उपलम्भ दिए हैं प्रेमी को। कभी निष्ठुरता पर कोसा है, कभी विपरीत आचरण पर। यह उपालम्भ बहुत सहज और अपरिहार्य बन गया है इसमें कोई आडम्बर नहीं। इसमें भी आस्था, आकांक्षाएं, दीनता, हीनता प्रकट हुई हैं। प्रिय की नीति अनीति, कपटपूर्ण, व्यवहार, निष्ठुरता और सारे दोष उसी के सिर पर हैं करारी चोट है प्रिय के आचरण पर तुम कौन धौं पाटी पढ़े हो लला। मन लेहु पै देहु छटांक नहीं।' इस तरह कवि ने अपने प्राणाधार पर अचूक व्यंग्य बाण छोड़े हैं कभी बादल के द्वारा कभी पवन के द्वारा संदेश भेजे हैं, वे बड़े मार्मिक हैं।

फारसी प्रभाव - कवि पर कहीं फारसी विरह वर्णन का प्रभाव हैं, कहीं सूफी संतों का किन्तु उनका रूप बहुत भारतीय पद्धति पर है। उनमें आशावद है। कहीं विरह घाती द्वारा घात की बात कही गई है और कहीं कारों क्रूर कोकिल द्वारा कलेजा निकाल लेने की बात कभी जीभ के जलने की बात, कभी अंगुली के जलने की स्थिति। यह उहात्मकता या नाजुक ख्याली वास्तव में मर्मस्पर्शी है और स्वाभाविक बन पड़ी है। ये वर्णन नगण्य हैं।

उदात्त भावसत्ता - कवि का पार्थिव प्रेम वैराग्य में रूपांतरित हो गया। कृष्ण की अनन्य भक्ति में बदल गया। भोगी भक्त बन गया। सुजान का प्रेमी दार्शनिक बन गया लेकिन उनके प्रेम में कहीं वासना, कलुषता, अश्लीलता नहीं रही। प्रत्येक शब्द में अश्लीलता है, पावनता है। वह लौकिक होकर भी अलौकिक ऊँचाइयों को स्पर्श करने लगा है।

इस तरह घनानन्द के विरह वर्णन में वियोगी की दीनता, विरह जन्य झुंझलाहट, प्रिय स्मरण, असहायता विरह आदि की कितनी ही गम्भीर मनोदशाओं में मर्मस्पर्शी प्रसंगों की योजना हुई है। सभी समीक्षकों ने मुक्त कण्ठ से घनानन्द के विरह वर्णन की प्रशंसा की है। दिनकर जी ने लिखा है कि "विरह तो घनानन्द की पूँजी ठहरा। रीतिकाल की बौद्धिक विरहानुभूति की निष्प्राणता और कुण्ठा के वातावरण में घनानन्द की पीड़ा की टीस सहसा हृदय को चीर देती है और मन सहज ही मान लेता है कि दूसरों के लिए किराए पर आँसू बहाने वालों के बीच यह एक ऐसा कवि है जो सचमुच अपनी पीड़ा से रो रहा है।' शम्भु प्रसाद बहुगुण के शब्दों में "प्रेम की यह गहन अनुभूति थी जिसने घनानन्द की कविता को वेदना की स्वाभाविक हरियाली देकर अस्वाभाविकता की मरुभूमि में भटकते हुए पाठक के लिए हरी-भरी भूमि के समान आनन्दप्रद बना दिया। निःसंदेह घनानन्द उन्मुक्त प्रेम के सर्वोत्कृष्ट गायक हैं। उनकी वास्तविक विरहानुभूति मार्मिक एवं प्रभावपूर्ण है। वह हमारे हृदय को बहुत आंदोलित करती है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भारतीय ज्ञान परम्परा और हिन्दी साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा में शुक्लोत्तर इतिहासकारों का योगदान बताइए।
  3. प्रश्न- प्राचीन आर्य भाषा का परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
  4. प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
  5. प्रश्न- आधुनिक आर्य भाषा का परिचय देते हुए उनकी विशेषताएँ बताइए।
  6. प्रश्न- हिन्दी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  7. प्रश्न- वैदिक भाषा की ध्वन्यात्मक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का इतिहास काल विभाजन, सीमा निर्धारण और नामकरण की व्याख्या कीजिए।
  9. प्रश्न- आचार्य शुक्ल जी के हिन्दी साहित्य के इतिहास के काल विभाजन का आधार कहाँ तक युक्तिसंगत है? तर्क सहित बताइये।
  10. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  11. प्रश्न- आदिकाल के साहित्यिक सामग्री का सर्वेक्षण करते हुए इस काल की सीमा निर्धारण एवं नामकरण सम्बन्धी समस्याओं का समाधान कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य में सिद्ध एवं नाथ प्रवृत्तियों पूर्वापरिक्रम से तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  13. प्रश्न- नाथ सम्प्रदाय के विकास एवं उसकी साहित्यिक देन पर एक निबन्ध लिखिए।
  14. प्रश्न- जैन साहित्य के विकास एवं हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उसकी देन पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  15. प्रश्न- सिद्ध साहित्य पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- आदिकालीन साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्य में भक्ति के उद्भव एवं विकास के कारणों एवं परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिए।
  18. प्रश्न- भक्तिकाल की सांस्कृतिक चेतना पर प्रकाश डालिए।
  19. प्रश्न- कृष्ण काव्य परम्परा के प्रमुख हस्ताक्षरों का अवदान पर एक लेख लिखिए।
  20. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  21. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  22. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  24. प्रश्न- भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  25. प्रश्न- उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल ) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, काल सीमा और नामकरण, दरबारी संस्कृति और लक्षण ग्रन्थों की परम्परा, रीति-कालीन साहित्य की विभिन्न धारायें, ( रीतिसिद्ध, रीतिमुक्त) प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ, रचनाकार और रचनाएँ रीति-कालीन गद्य साहित्य की व्याख्या कीजिए।
  26. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य प्रवृत्तियों का परिचय दीजिए।
  27. प्रश्न- हिन्दी के रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  28. प्रश्न- बिहारी रीतिसिद्ध क्यों कहे जाते हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
  29. प्रश्न- रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है?
  30. प्रश्न- आधुनिक काल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  31. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  33. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- भारतेन्दु युग के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
  35. प्रश्न- भारतेन्दु युग के गद्य की विशेषताएँ निरूपित कीजिए।
  36. प्रश्न- द्विवेदी युग प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
  37. प्रश्न- द्विवेदी युगीन कविता के चार प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये। उत्तर- द्विवेदी युगीन कविता की चार प्रमुख प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं-
  38. प्रश्न- छायावादी काव्य के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- छायावाद के दो कवियों का परिचय दीजिए।
  40. प्रश्न- छायावादी कविता की पृष्ठभूमि का परिचय दीजिए।
  41. प्रश्न- उत्तर छायावादी काव्य की विविध प्रवृत्तियाँ बताइये। प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता, नवगीत, समकालीन कविता, प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- प्रयोगवादी काव्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
  43. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
  44. प्रश्न- हिन्दी की नई कविता के स्वरूप की व्याख्या करते हुए उसकी प्रमुख प्रवृत्तिगत विशेषताओं का प्रकाशन कीजिए।
  45. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  46. प्रश्न- गीत साहित्य विधा का परिचय देते हुए हिन्दी में गीतों की साहित्यिक परम्परा का उल्लेख कीजिए।
  47. प्रश्न- गीत विधा की विशेषताएँ बताते हुए साहित्य में प्रचलित गीतों वर्गीकरण कीजिए।
  48. प्रश्न- भक्तिकाल में गीत विधा के स्वरूप पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  49. अध्याय - 13 विद्यापति (व्याख्या भाग)
  50. प्रश्न- विद्यापति पदावली में चित्रित संयोग एवं वियोग चित्रण की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  51. प्रश्न- विद्यापति की पदावली के काव्य सौष्ठव का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- विद्यापति की सामाजिक चेतना पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  53. प्रश्न- विद्यापति भोग के कवि हैं? क्यों?
  54. प्रश्न- विद्यापति की भाषा योजना पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
  55. प्रश्न- विद्यापति के बिम्ब-विधान की विलक्षणता का विवेचना कीजिए।
  56. अध्याय - 14 गोरखनाथ (व्याख्या भाग)
  57. प्रश्न- गोरखनाथ का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।
  58. प्रश्न- गोरखनाथ की रचनाओं के आधार पर उनके हठयोग का विवेचन कीजिए।
  59. अध्याय - 15 अमीर खुसरो (व्याख्या भाग )
  60. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  63. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  64. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  65. अध्याय - 16 सूरदास (व्याख्या भाग)
  66. प्रश्न- सूरदास के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- "सूर का भ्रमरगीत काव्य शृंगार की प्रेरणा से लिखा गया है या भक्ति की प्रेरणा से" तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
  68. प्रश्न- सूरदास के श्रृंगार रस पर प्रकाश डालिए?
  69. प्रश्न- सूरसागर का वात्सल्य रस हिन्दी साहित्य में बेजोड़ है। सिद्ध कीजिए।
  70. प्रश्न- पुष्टिमार्ग के स्वरूप को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए?
  71. प्रश्न- हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान निर्धारित कीजिए।
  72. अध्याय - 17 गोस्वामी तुलसीदास (व्याख्या भाग)
  73. प्रश्न- तुलसीदास का जीवन परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  74. प्रश्न- तुलसी की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  75. प्रश्न- अयोध्याकांड के आधार पर तुलसी की सामाजिक भावना के सम्बन्ध में अपने समीक्षात्मक विचार प्रकट कीजिए।
  76. प्रश्न- "अयोध्याकाण्ड में कवि ने व्यावहारिक रूप से दार्शनिक सिद्धान्तों का निरूपण किया है, इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  77. प्रश्न- अयोध्याकाण्ड के आधार पर तुलसी के भावपक्ष और कलापक्ष पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- 'तुलसी समन्वयवादी कवि थे। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- तुलसीदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
  80. प्रश्न- राम का चरित्र ही तुलसी को लोकनायक बनाता है, क्यों?
  81. प्रश्न- 'अयोध्याकाण्ड' के वस्तु-विधान पर प्रकाश डालिए।
  82. अध्याय - 18 कबीरदास (व्याख्या भाग)
  83. प्रश्न- कबीर का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
  84. प्रश्न- कबीर के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- कबीर के काव्य में सामाजिक समरसता की समीक्षा कीजिए।
  86. प्रश्न- कबीर के समाज सुधारक रूप की व्याख्या कीजिए।
  87. प्रश्न- कबीर की कविता में व्यक्त मानवीय संवेदनाओं पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- कबीर के व्यक्तित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  89. अध्याय - 19 मलिक मोहम्मद जायसी (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- मलिक मुहम्मद जायसी का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  91. प्रश्न- जायसी के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  92. प्रश्न- जायसी के सौन्दर्य चित्रण पर प्रकाश डालिए।
  93. प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  94. अध्याय - 20 केशवदास (व्याख्या भाग)
  95. प्रश्न- केशव को हृदयहीन कवि क्यों कहा जाता है? सप्रभाव समझाइए।
  96. प्रश्न- 'केशव के संवाद-सौष्ठव हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि हैं। सिद्ध कीजिए।
  97. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षेप में जीवन-परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- केशवदास के कृतित्व पर टिप्पणी कीजिए।
  99. अध्याय - 21 बिहारीलाल (व्याख्या भाग)
  100. प्रश्न- बिहारी की नायिकाओं के रूप-सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  101. प्रश्न- बिहारी के काव्य की भाव एवं कला पक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  102. प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- बिहारी ने किस आधार पर अपनी कृति का नाम 'सतसई' रखा है?
  104. प्रश्न- बिहारी रीतिकाल की किस काव्य प्रवृत्ति के कवि हैं? उस प्रवृत्ति का परिचय दीजिए।
  105. अध्याय - 22 घनानंद (व्याख्या भाग)
  106. प्रश्न- घनानन्द का विरह वर्णन अनुभूतिपूर्ण हृदय की अभिव्यक्ति है।' सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
  107. प्रश्न- घनानन्द के वियोग वर्णन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  108. प्रश्न- घनानन्द का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
  109. प्रश्न- घनानन्द के शृंगार वर्णन की व्याख्या कीजिए।
  110. प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
  111. अध्याय - 23 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  112. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की शैलीगत विशेषताओं को निरूपित कीजिए।
  113. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की भाव-पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  114. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की भाषागत विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
  115. प्रश्न- भारतेन्दु जी के काव्य की कला पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए। उत्तर - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की कलापक्षीय कला विशेषताएँ निम्न हैं-
  116. अध्याय - 24 जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग )
  117. प्रश्न- सिद्ध कीजिए "प्रसाद का प्रकृति-चित्रण बड़ा सजीव एवं अनूठा है।"
  118. प्रश्न- जयशंकर प्रसाद सांस्कृतिक बोध के अद्वितीय कवि हैं। कामायनी के संदर्भ में उक्त कथन पर प्रकाश डालिए।
  119. अध्याय - 25 सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (व्याख्या भाग )
  120. प्रश्न- 'निराला' छायावाद के प्रमुख कवि हैं। स्थापित कीजिए।
  121. प्रश्न- निराला ने छन्दों के क्षेत्र में नवीन प्रयोग करके भविष्य की कविता की प्रस्तावना लिख दी थी। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  122. अध्याय - 26 सुमित्रानन्दन पन्त (व्याख्या भाग)
  123. प्रश्न- पंत प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। व्याख्या कीजिए।
  124. प्रश्न- 'पन्त' और 'प्रसाद' के प्रकृति वर्णन की विशेषताओं की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए?
  125. प्रश्न- प्रगतिवाद और पन्त का काव्य पर अपने गम्भीर विचार 200 शब्दों में लिखिए।
  126. प्रश्न- पंत के गीतों में रागात्मकता अधिक है। अपनी सहमति स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- पन्त के प्रकृति-वर्णन के कल्पना का अधिक्य हो इस उक्ति पर अपने विचार लिखिए।
  128. अध्याय - 27 महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  129. प्रश्न- महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का उल्लेख करते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
  130. प्रश्न- "महादेवी जी आधुनिक युग की कवियत्री हैं।' इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।
  131. प्रश्न- महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय संक्षेप में दीजिए।
  132. प्रश्न- महादेवी जी को आधुनिक मीरा क्यों कहा जाता है?
  133. प्रश्न- महादेवी वर्मा की रहस्य साधना पर विचार कीजिए।
  134. अध्याय - 28 सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' (व्याख्या भाग)
  135. प्रश्न- 'अज्ञेय' की कविता में भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों समृद्ध हैं। समीक्षा कीजिए।
  136. प्रश्न- 'अज्ञेय नयी कविता के प्रमुख कवि हैं' स्थापित कीजिए।
  137. प्रश्न- साठोत्तरी कविता में अज्ञेय का स्थान निर्धारित कीजिए।
  138. अध्याय - 29 गजानन माधव मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- मुक्तिबोध की कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  140. प्रश्न- मुक्तिबोध मनुष्य के विक्षोभ और विद्रोह के कवि हैं। इस कथन की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
  141. अध्याय - 30 नागार्जुन (व्याख्या भाग)
  142. प्रश्न- नागार्जुन की काव्य प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।
  143. प्रश्न- नागार्जुन के काव्य के सामाजिक यथार्थ के चित्रण पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
  144. प्रश्न- अकाल और उसके बाद कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
  145. अध्याय - 31 सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' (व्याख्या भाग )
  146. प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  147. प्रश्न- 'धूमिल की किन्हीं दो कविताओं के संदर्भ में टिप्पणी लिखिए।
  148. प्रश्न- सुदामा पाण्डेय 'धूमिल' के संघर्षपूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व की विवेचना कीजिए।
  149. प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  150. प्रश्न- धूमिल की रचनाओं के नाम बताइये।
  151. अध्याय - 32 भवानी प्रसाद मिश्र (व्याख्या भाग)
  152. प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  153. प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र की कविता 'गीत फरोश' में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
  154. अध्याय - 33 गोपालदास नीरज (व्याख्या भाग)
  155. प्रश्न- कवि गोपालदास 'नीरज' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  156. प्रश्न- 'तिमिर का छोर' का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
  157. प्रश्न- 'मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ' कविता की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।

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